व्यावहारिक जीवन में आध्यात्मिक साधना

व्यावहारिक जीवन में आध्यात्मिक साधना

डॉ. सुधांशु शेखर मिश्र

आध्यात्मिकता हमारे उच्चतर आत्म का जागरण है। यह विचारों, भावनाओं और कार्यों को इस प्रकार परिष्कृत करती है कि जीवन शांति, पवित्रता और प्रेम से संचालित हो। यह इंद्रिय सुखों पर आधारित नहीं है, बल्कि आत्मा के शुद्ध स्वरूप का अनुभव कराने वाली यात्रा है।

आध्यात्मिकता सार्वभौमिक है। यह किसी धर्म, जाति या क्षेत्र की सीमा में बंधी नहीं है। इसके मूल में शांति, प्रेम और सत्य हैं — जो सभी मनुष्यों को आकर्षित करते हैं। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रेरित करती है, तर्कपूर्ण चिंतन को बढ़ावा देती है और साथ ही एक अलौकिक शक्ति से ऊर्जा प्राप्त करती है।

मेरे जीवन में आध्यात्मिकता एक मार्गदर्शक प्रकाश रही है। पिछले 35 वर्षों से मैं ध्यान का अभ्यास कर रहा हूँ। इस साधना ने मुझे तनावमुक्त किया है और मेरे चिकित्सकीय कार्य में दक्षता बढ़ाई है। इसने मुझे संतुलन, शांति और जीवन की चुनौतियों से निपटने की शक्ति दी है।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था — “विज्ञान बिना आध्यात्मिकता के लंगड़ा है, और आध्यात्मिकता (कथित धर्म नहीं) बिना विज्ञान के अंधी है।” यह स्पष्ट करता है कि विज्ञान और आध्यात्मिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

दुर्भाग्य से, कुछ “धर्मगुरु” अपनी व्यक्तिगत विचारधारा को आध्यात्मिकता के नाम पर फैलाते हैं। इस भ्रम से बुद्धिजीवी नास्तिकता की ओर आकर्षित हो जाते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि एक ईमानदार नास्तिक, जो सत्य और नैतिकता का पालन करता है, वह एक अंधविश्वासी व्यक्ति से अधिक आध्यात्मिक होता है।

भगवान बुद्ध ने कभी ईश्वर के बारे में बात नहीं की, फिर भी लोग उन्हें “ईश्वर का अवतार” मानते हैं। यह समाज का विरोधाभास है, लेकिन उनके शुद्ध उपदेश आस्तिक और नास्तिक दोनों को प्रेरित करते हैं।

असल में, आध्यात्मिकता का संबंध अनुष्ठान या अंधविश्वास से नहीं है। यह उच्च मूल्यों, आंतरिक शांति और सार्वभौमिक प्रेम पर आधारित जीवन का मार्ग है।


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